Friday, July 31, 2009



जीत....



जीत.... आत्मा के अन्दर धगधगती हुई आग होतीं हैं।







जब कर के दिखाना ही सब कुछ बन जाता हैं, जो अन्दर ही अन्दर बहोत समय से सुलगती हुई आग जब बहोत ताकद और आत्मविश्वास से बाहर आतीं हैं वो "जीत" ही होतीं हैं।


जीत.... एक संयम का परिणाम होतीं हैं, जीत.... एक तपस्या का परिणाम होतीं हैं।


जब सब कुछ, हर एक बात आत्मा से निकलती हैं, अपने ही जोश के साथ जब आगे बढ़तीं हैं, तब वो हर बात जीत का रूप लें लेतीं हैं।


जीत.... एक दृष्टिकोण का परिणाम होतीं हैं।


जीत.... लक्ष्य के प्रति बढाया हुआ हर सफलतम कदम का परिणाम होतीं हैं।


जीत.... ध्यान बनाए रखनें का परिणाम होतीं हैं।




जीत.... आत्मा की गहरीं तथा प्रबल इच्छा....

Thursday, July 30, 2009



शिक्षा....



शिक्षा.... मनुष्य जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग होता हैं।












जीवन का पाठ हमेशा पढ़ा जाता हैं ना की पढाया जाता हैं।


लेकिन हाँ जब कभी किसी लायक मनुष्य से कुछ सिखने मिलें तो उसे सिख लेना चाहिए।


शिक्षा जब कभी भी, जहाँ कहीं पर भी मिलें मनुष्य ने उसे सिख लेना चाहिए।


जब हमें शिक्षा मिल रहीं हों तो हमें इसे हमारा सदभाग्य समझ लेना चाहिए।


जब शिक्षा मिल रहीं हों तो उसे ध्यान से और समतोल मन से समझ तथा सिख लेना चाहिए।


शिक्षा मिलना यह हमारा महत्भाग्यहोता हैं।


शिक्षा देने वाला हमारें दोषों को घटाता नही बल्कि हमारें गुणों को बढाता हैं, ऐसे गुणों को जिससे हम हमारें दोषों को मिटा सकें।


हमारें दोष हमें ही मिटानें होतें हैं। शिक्षा देने वाला तो हम में वो ताकद बढ़ा देता हैं जिससे हम ख़ुद हमारें दोषों को जान सकें और उन्हें मिटा सकें।


किसी समस्या को सुलझानें का एक बहोत ही सरल उपाय यह हैं की उस समस्या को अच्छी तरह और पुरी तरह जान ले की असल में समस्या क्या हैं।


अगर यह हम पुरी आत्मीयता से करलें तो उपाय अपने आप सामने आ जाएगा। फिर तो ना उपाय ढूँढना पड़ेगा और ना उसके प्रति कोई कष्ट उठाना पड़ेगा।


बस.... समस्या क्या हैं यह अच्छी तरह जान तथा पहचान लें।


कोई चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न करें हमारें दोषों को मिटा नहीं सकता।


हमारें दोष हमें ही मिटानें होतें हैं। क्यों की हम ही वो व्यक्ति होतें हैं जो अपने आप को औरों से ज्यादा भली भांति जानते हैं।



शिक्षा.... मनुष्य जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग....

Wednesday, July 29, 2009



तैयारी....



कुछ पाने की इच्छा होना और उस के लिए शुरुवात करना तैयारी कहलाती हैं।







इसमें इच्छा होतीं हैं। इसमें दृढ़ निश्चय होता हैं।


इसमें विजय पाने की चाहत होतीं हैं।


इसमें विजय पाने के प्रति समर्पण होता हैं।


इसमें खुशी होतीं हैं। इसमें आत्मविश्वास होता हैं।


इसमें आत्मा का दर्पण झलकता हैं।


तैयारी आत्मा की अंदरूनी इच्छा तथा चाहत होतीं हैं।


इसमें ध्यान सीधा मंजिल पर होता हैं।


इसमें जीतना ही लक्ष होता हैं।


इसमें हर बात के लिए मानसिक तथा शरीरिक संतुलन बनाया जाता हैं।


तैयारी हर चीज़ की जान होतीं हैं।



तैयारी.... एक दृष्टिकोण.....

Tuesday, July 28, 2009



प्रशिक्षक....



प्रशिक्षक बनने की इच्छा करें तो अच्छें खिलाड़ी अपने आप बन जाओगे।






अगर अच्छा नायक बनने की इच्छा हो तो अच्छा अनुयायी बनने की कोशिश करें।


प्रशिक्षक एक अनुभव होता हैं। हमारीं खामियों तथा त्रुटियों को प्रशिक्षक अच्छीं तरह जान तथा पहचान सकता हैं।


हमारें अन्दर सो रहे स्वत्व को प्रशिक्षक जगा सकता हैं।


हमारीं खूबियों को ताकद में बदलना प्रशिक्षक अच्छीं तरह जानता हैं।


प्रशिक्षक का ध्यान ऊपर से निचे की ओर होता हैं, जबकि एक खिलाड़ी का ध्यान निचे से ऊपर की ओर होता हैं।


प्रशिक्षक हर बात को आसानी से भाप सकता हैं।


प्रशिक्षक शिस्त होता हैं। प्रशिक्षक खिलाड़ियों की प्रति नहीं बल्कि ख़ुद के प्रति कठोर होता हैं।


इसीलिए कोई निर्णय लेते हुए उसे सबसे पहले अपने प्रति कठोर बनना पड़ता हैं।


प्रशिक्षक हमारा सबसे पहला शुभचिंतक होता हैं।


माता पिता के बाद प्रशिक्षक का ही मान होता हैं। माता पिता भी प्रशिक्षक का रूप हो सकतें हैं।



प्रशिक्षक.... हमारीं जिंदगी का शिल्पकार....

Monday, July 27, 2009




ताड़ना....













किसी बात को सही तरीके से पहचानना "ताड़ना" कहलाता हैं।




सही ढंग से और पूर्णता युक्त तरीके से महसूस करना "ताड़ना" कहलाता हैं।



"ताड़ना" एक कसब हैं, एक कौशल्य हैं।



इसे सही तरीके से जानना तथा महसूस करना ज़रूरी होता हैं।



इसमें नज़र होतीं हैं। इसमें देखना और समझना बहोत महत्वपूर्ण होता हैं।



इसमें प्रामाणिकता होतीं हैं। "ताड़ना" एक क्रिया होती हैं।



निर्णय लेने में ताड़ने की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभातीं हैं।





"ताड़ना".... एक बहोत ही महत्वपूर्ण कौशल्य....

Sunday, July 26, 2009



चक दे....



चक दे.... इस शब्द में बहोत ताकद हैं।


पुरी तरह शक्ति से भरा हुआ हैं ये शब्द।



इसमें निश्चय हैं।

इसमें पुरा समर्पण हैं।

ये ताकद हैं। ये हिम्मत हैं। ये आत्मविश्वास हैं।


ये निडर हैं। इसमें सबसे खास.... आदर हैं। इसमे इज्जत हैं। इसमें मन और दिमाग का समतोल हैं।


इसमें शिस्त हैं। इसमें कदर हैं। इसमें पूर्णता का निश्चय हैं।


इसमें सहनशक्ति हैं। इसमें धेर्य हैं।


इसमें प्रमाणिकता हैं।



चक दे..... बस... चक दे..... और कुछ नहीं.....

Thursday, July 23, 2009



आदर्श....



आदर्श.... मन का एक लक्ष्य।


आदर्श मन का समर्पण होता हैं।


आदर्श आत्मा का केन्द्र होता हैं। आत्मा का प्रतिबिम्ब होता हैं आदर्श।


आदर्श परिश्रम होता हैं। आदर्श लगन होता हैं। आदर्श मन की प्रेरणा होता हैं।


आदर्श मन का केंद्रबिंदु होता हैं।


आदर्श एक स्वाभिमान होता हैं। आदर्श एक दृढ़ निश्चय होता हैं।


आदर्श एक सपना होता हैं।


आदर्श एक जीवन होता हैं। आदर्श एक स्थाई रूप होता हैं।


आदर्श जीवन का एक सपना होता हैं।


आदर्श हमारीं जिंदगी होता हैं।



आदर्श.... मन और आत्मा का स्थाई बिन्दु....


Wednesday, July 22, 2009



दूरदृष्टि....




दूरदृष्टि.... एक दूर की सोच होतीं हैं ।



एक अथांग समझ होतीं हैं। इसमें परिपक्वता होतीं हैं, इसमें गहराई होतीं हैं।


इसमें परिणाम को देखनें की तथा समझनें की दृष्टी होतीं हैं।


दूरदृष्टि में सुरक्षितता छुपीं होतीं हैं। इसमें विजय की भावना होतीं हैं।


इसमें गहरीं सहनशीलता होतीं हैं। इसमें सच्चाई होतीं हैं।


इसमें हर कार्य की रूपरेखा होतीं हैं।


दूरदृष्टि परिस्थितियों पर निर्भर करतीं हैं।


जब विजय की भावना आत्मा से आ रही हो तो दूरदृष्टि अपने आप अपना कार्य करनें लगतीं हैं।




दूरदृष्टि.... आत्मा में विजय की भावना का आभास....

Tuesday, July 21, 2009



मन के रंग....



मन के रंग.... कैसे होतें हैं कभी कोशिश की हैं देखनें की या महसूस करनें की ?



मन के रंग.... ज्यादातर तो परिस्थितियों पर ही निर्भर करतें हैं।



आज अगर हम खुश हैं तो मन के रंग भी इन्द्र धनुष्य की तरह चमक तथा खिल उठातें हैं।



मन के रंगों की असली उड़ान और बरसात तो बचपन में ही देखनें मिलतीं हैं।



हर चीज़ में सच्चाई, मिठास और अपनापन होता हैं। बचपन में हम सब खुशी का अहसास पाने की तान में तथा पानें की ताक में रहतें हैं। क्या हो अगर हर चीज़ सरल और सुलभ होने लगें तथा दिखनें लगें ?



बचपन.... मन के हर रंग में रंग जाता हैं। इस रंग में रंगने के लिए इसे किसी आमंत्रण की ज़रूरत नहीं पड़तीं।



बस खुशी की एक फुहार मिलीं, खुशी का एक एहसास मिला और बस मन के रंग में रंग गए।



और बचपन माँ की गोद में हो तो........ फिर तो बस..... पूछों मत।



उस समय मन के रंग कैसे होंगे ? महसूस तो कीजिए।




मन के रंग..... बचपन और माँ के प्यार और स्नेह का एक अद्भुत मिलाप....

Monday, July 20, 2009


बचपन....


बचपन.... और क्या कहा जा सकता हैं इसके बारें में।

बस.... महसूस कर लों।

मासूमियत और निष्पापता का पूरा भंडार होता हैं बचपन।

इसमें शुद्धता होतीं हैं, पवित्रता होतीं हैं।

इसमें मिठास होतीं हैं। इसमें अपनापन होता हैं।

इसमें मित्रता होतीं हैं। इसमें जान होतीं हैं। बचपन आत्मा का दर्पण होता हैं।

मन की पवित्रता बचपन में दिखाई देतीं हैं।


बचपन में लगाव होता हैं। बचपन में कदर होतीं हैं।

बचपन में ओढ़ होतीं हैं। इसमें सरलता होतीं हैं।

इसमें स्पष्टता होतीं हैं।


बचपन.... दिल की धड़कन.... दिल की जान....

Saturday, July 18, 2009






शीतलता....





शीतलता.... किसे अच्छी नहीं लगतीं ?



इसमें ठंडक होतीं हैं।



इसमें मधुरता होतीं हैं। इसमें अपनापन होता हैं। इसमें स्वागत छिपा होता हैं।



इसमें मिठास होतीं हैं। यह एक मनभावन भावना होतीं हैं।



यह आत्मा को हमेशा शांत रखती हैं। यह एक मीठी भावना होतीं हैं।



इसमें पवित्रता होतीं हैं। इसमें आत्मा की स्थिरता देखनें मिलतीं हैं।



शीतलता हमेशा स्थैर्य होतीं हैं। इसमें आत्मा की खुशी झलकतीं हैं।



इसमें एकांत देखने मिलता हैं। इसमें शांतता होतीं हैं।





शीतलता.... आत्मा का एक कोमल एहसास....



Friday, July 17, 2009




मुस्कुराहट....




मुस्कुराहट.... एक मीठी सी भावना होतीं हैं।


मुस्कुराहट.... हमेशा अंदरूनी खुशी होती हैं।


इसमें हमेशा निष्पापता होतीं हैं। मुस्कुराहट हमेशा सुंदर और मीठी लगतीं हैं।



इसमें कोमलता की भावना होतीं हैं। खासकर नन्हें बच्चों की मुस्कुराहट.... बस... पूछों मत, एक भगवान की प्रतिमा होतीं हैं।



मुस्कुराहट हमेशा निर्मल तथा मनमोहक होतीं हैं। नन्हें बच्चों को मुस्कुरातें हुए देखें तो उनकी मुस्कुराहट से नज़र नहीं हटतीं।



मुस्कुराहट.... हर भावना से परें होतीं हैं।




मुस्कुराहट... एक मीठापन.... एक मीठी भावना.....

Thursday, July 16, 2009



रोशनी....



रोशनी.... अंधेरे से उजाले की ओर जाने का सुगम तथा सरल माध्यम।


रोशनी सुहावनी होती हैं।


चाँद की रोशनी रात में और सूरज की रोशनी दिन में अपना एक अलग ही महत्त्व रखतीं हैं।


लेकिन मध्यम रोशनी हमेशा प्यारी लगतीं हैं। इस में शीतलता होतीं हैं। इस में मिठास होती हैं।


यह अपने आप ही में अद्भुत होतीं हैं। इस में आकर्षण होता हैं। इसमें कोमलता होतीं हैं।


रोशनी पथ दर्शक होतीं हैं। मंजिल तक पहुँचने का एक माध्यम होतीं हैं।


रोशनी मार्गदर्शक होतीं हैं।



रोशनी.... एक भव्यता और दिव्यता....

Wednesday, July 15, 2009



पथ....



पथ.... जो हमेशा हमें ज़िंदा रखतें हैं।


जो हमें हमारीं मंज़िल तक ले जातें हैं।



पथ... का सफर तो बहोत सुहाना होता हैं।


जिंदगी के हर पहलु को समजने का यह बहोत ही सुगम और सरल मार्ग हैं।


हम जीवन की हर एक बात को पथ के सफर में ही जान तथा समझ सकतें हैं। जब हम पथ पर चलतें हैं तो पथ का सफर हर मोड़ पर अलग सा नज़र आता हैं।


हर मोड़ पर एक अलग ही सुहाना सा दृश्य हमें दिखाई देता हैं। पथ... हमारीं ज़िन्दगी का एक हिस्सा होतें हैं।


जब कभी हमने पथ का साथ चुना हैं हमेशा एक नई मंज़िल को पाया हैं।


इस प्रकार पथ तो हमारें एक अच्छें मित्र साबित होतें हैं। हैं ना ?



पथ....हमारें जीवन के एक सच्चें मित्र......

Tuesday, July 14, 2009






मन के द्वार....




मन के द्वार..... हमेशा एक सुन्दरता की निशानी होतें हैं।



सुन्दरता की झलक मन के द्वार से ही होकर गुजरती हैं।



मन के सारें रंग मन के द्वार पर झिलमिलातें हुए नज़र आतें हैं। क्या कोई जान या महसूस भी कर पता हैं की मन के द्वार कैसे होतें हैं।



सच पूछों तो मन के द्वार हमेशा सुंदर तथा कोमलता के फूलों से सजे हुए होतें हैं। मन के द्वारों से एक अलग सी ही महक आतीं हैं।



मन के द्वार जब कोई अपने मन से देख लेता हैं तो फिर कुछ जानने की या समझने की ज़रूरत ही कहाँ रह जाती हैं।



मन की हर भावना, मन के द्वार पर हमेशा एक दूजे से अपनी बात करती हुई दिखाई देतीं हैं।



क्या मन के द्वार इतने सुंदर होतें हैं ? जी हाँ....





मन के द्वार...... हर शुभ काम की शुरुवात....

Monday, July 13, 2009



प्रतिबिम्ब.....



विचार हमारें प्रतिबिम्ब होतें हैं।

वास्तविकता में आत्मा ही हमारी असली प्रतिबिम्ब होती हैं।



प्रतिबिम्ब हमारी छबि होतें हैं। प्रतिबिम्ब हमारें विचारों के दर्पण होतें हैं।


प्रतिबिम्ब हमें हमारें मूल्य तथा हमारीं त्रुटियां प्रतिबिंबित करतें हैं।


यह एक बहुत ही आश्चर्यजनक बात होती हैं की हम हमारीं प्रतिमा को अपने सामने देख सकतें हैं।


प्रतिबिम्ब हमारी आत्मा के दर्पण होतें हैं। प्रतिबिम्ब में हम अपने वर्तमान को जान सकतें हैं।


प्रतिबिम्ब में हमारीं आत्मा तथा मन की छबि स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।


हमारीं हर बात को हम प्रतिबिम्ब में देख तथा ताड़ सकतें हैं। प्रतिबिम्ब में हमेशा सच्चाई होती हैं।




प्रतिबिम्ब..... हमारीं आत्मा और मन के दर्पण...

Sunday, July 12, 2009



बसंत.....



बसंत...... बस, मन में एक बहार सी आ जाती हैं।


बसंत की बहार ही ऐसी होती है.... की हर कही पर बहार ही बहार नज़र आती हैं।


इस माह में स्वर्ग की झलक सी दिखाई पड़ती हैं। बसंत रुतु सब रुतुओं का राजा कहलाता हैं।


बसंत हर जगह हर तरफ़ एक उमंग और बहार फैलता हुआ आता हैं। मानो सृष्टि ने हर तरफ़ खुशियों की बहार उडेल दी हों। मन तो बसंत में ही पुरी तरह खिलता हैं।


उत्साह और उमंग यह दोनों ही एक साथ चलतें दिखाई देते हैं। आत्मा भी बसंत के बहार में पुरी तरह से भिग जाती हैं।


यह एक नैसर्गिक घटना और नैसर्गिक उमंग होती हैं।


हम इस बसंत में पुरी ज़िन्दगी जी लेतें हैं। हैं ना ?



बसंत..... मन और आत्मा की बहार.....

Wednesday, July 8, 2009



निष्पापता.......



निष्पापता... किसी भाव से अनजान रहना हीं निष्पापता का होना कहलाता हैं।


यह एक बड़ा ही अदभुत दृश कहलाता हैं। निष्पापता बच्चों में नैसर्गिक रूप से होती हैं।


जब बच्चा अपनी माँ से कोई मासूम या अनजान सा सवाल कर रहा हो तो वो दृश आप महसूस कर सकतें हों।


निष्पापता... यह एक भावना रहित भाव का आभास होतीं हैं। इसमें मासूमता तो पुरी तरह भरीं होती हैं। यह एक निष्पाप भावना होती हैं। यह एक सच्ची भावना होती हैं। निष्पापता नैसर्गिक होतीं हैं।


यह अपने आप प्रकट होती हैं। इसमें कोमलता होती हैं। इसमें आदर होता हैं। इसमें प्यार होता हैं।


इसमें मैत्री होतीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण इसमें निर्भयता होती हैं। निष्पापता डर से हमेशा परें होती हैं।


इसमें आत्मा का प्रतिबिम्ब प्रकट होता हैं। यह तो आत्मा का सहज रूप से दर्पण होती हैं।



निष्पापता....आत्मा की एकमेव पहचान.....

Tuesday, July 7, 2009



आत्मा....



आत्मा हमारा अस्तित्व होती हैं। आत्मा हमारी सच्चाई होती हैं। आत्मा की आवाज़ ईश्वर की आवाज़ होती हैं।

आत्मा ईश्वर का रूप होती हैं।


आत्मा की भावना प्रबल और जागृत होती हैं। आत्मा से ही हमारे अस्तित्व की पहचान होतीं हैं।


जब कभी निर्णय लेना हो तो आत्मा की आवाज़ सुन लेनी चाहिए। पहली बार देखने पर जो आवाज़ अन्दर से आती हैं वो आत्मा की आवाज़ होती हैं। वो आवाज़ हमेशा सच होती हैं।


आत्मा की सुनकर अगर हम कोई काम करें तो हम सफल होतें हैं। आत्मा हमेशा सही रास्ता दिखाती हैं। आत्मा की आवाज़ सुनकर उसकी रह पर चलने से भय से दूर तथा आत्मविश्वास के साथ चला जा सकता हैं।



आत्मा.... हमारी सच्छी पहचान.....

Monday, July 6, 2009


अकेलापन....



अकेलापन.... एक सबसे अच्छा और सच्छा दोस्त। यह एक बड़ा ही प्यारा दोस्त होता है।

इसके साथ रहते हुए हम कभी अकेलापन महसूस ही नहीं कर पातें।

जब अकेलापन साथ हो तो हम कभी अकेला महसूस नहीं करतें।

यह हमारे अन्दर की खुशी और अपनेपन को बाहर लाता हैं तथा अपने अन्दर छुपें हुए उस खूबी को बाहर लाता हैं जिसे सिर्फ़ अकेलेपन में ही पाया तथा महसूस किया जा सकता हैं।
अकेलेपन में हम अपने आप के सर्वाधिक नज़दीक आतें हैं।


हम ख़ुद को अच्छी तरह महसूस तथा जान पातें हैं। अकेलापन हम से हमारी हर बात बाँटता हैं। यह हमें अंदरूनी खुशी देता हैं।
अकेलेपन में हम ख़ुद को खुश महसूस करतें हैं। अकेलापन एक मीठा अहसास होता हैं।


अकेलेपन में हम ख़ुद के अधिक करीब आतें हैं।



अकेलापन...एक अपना प्यारा दोस्त.....

Sunday, July 5, 2009



उत्सुकता....



मन को भाने (अच्छी लगने) वाली चीज़ के बारें में जानने की उत्कंठा रखना या उत्कंठा होना उत्सुकता कहलाती हैं।


यह ऐसे चीज़ के बारें में जानने की इच्छा या उत्कंठा होती हैं जिसे कभी न जाना हो। उत्सुकता मन और आत्मा में एक मिठास जगाती हैं।

उत्सुकता भविष्य के बारें में जानने की भावना होती हैं। जानना और महसूस करने की भावना को उत्सुकता कहा जा सकता हैं।


अनजानी चीज़ को जानने की चाह रखना उत्सुकता ही तो हैं। उत्सुकता में मिठास होती हैं। उत्सुकता मीठी लगती हैं। भविष्य में होनें वालें परिणामों को जानने की इच्छा उत्सुकता कहलाती हैं।


उत्सुकता परिणामों पर निर्भर करती हैं। अगर परिणाम शीघ्र ही दिखनें या समज में आने वालें हो तो उत्सुकता की मिठास भी उतनी ही होती हैं।


उत्सुकता एक मीठी भावना होती हैं।



उत्सुकता.... जानने की आंस.....

Saturday, July 4, 2009



आँसूं....



आँसूं .... भावनाओं के दर्पण होतें हैं। मन के विचारों के प्रतिक होतें हैं। आँसूं इच्छाओं के प्रतिबिंब होतें हैं।


आँसूंओ की भाषा हर कोई नहीं समज़ पाता। ये तो आत्मा की प्रतिमा होतें हैं।

आँसूं तो आत्मा की भाषा होतें हैं। आँसूं तो मन और आत्मा की भाषा कहतें हैं। आँसूं विचारों के प्रतिक होतें हैं। आँसूं मन के दर्पण हो सकते हैं ? जी हाँ, आँसूं तो मन और आत्मा दोनों के दर्पण होतें हैं।


आँसूं एक भाषा होतें हैं और ये भाषा अपने आप पढ़ी जाती हैं। आँसूंओ की भाषा तो मन की भाषा पढ़ने वाले सहज रूप से पढ़ सकतें हैं।


आँसूं हमें और हमारें विचारों को प्रकट करतें हैं।


आँसूंओ का होना भावनाओं के अस्तित्व का प्रतिक हैं।



आँसूं..... मन और आत्मा के प्रतिबिंब.....

Thursday, July 2, 2009


मन के आभूषण....



मन के आभूषण.... आदर,संकोच,निर्मलता,निर्भयता,अपनापन,लज्जा,मिठास... यह सब मन के अलौकिक आभूषण हैं।


मन एक अपनी ही ईच्छा से चलने वाला राजा और इस राजा के ऊपर लिखित सभी अमूल्य आभूषण होते है। इन अलौकिक आभूषणों के बिना तो मन की शोभा ही नही बढ़ती ऊपर लिखित सभी आभूषणों के अपने अपने अमूल्य गुन होते हैं। यह सभी आभूषण मन रूपी राजा की शोभा बढ़ाते हैं।


एक राजा जो अपने आभूषणों के बिना हमेशा अधुरा सा लगता हैं। पर आभूषण ही उसे पूर्णत्व दिलाते हैं। राजा तभी राजा कहलाता हैं जब उस में राजा जैसे गुन हो। आभूषण तो बस राजा की शोभा बढाते हैं। अगर मन रूपी राजा के पास ये अमूल्य आभूषण न हो तो मन रूपी राजा की शोभा कैसे बढेगी ?


मन के आभूषण हमेशा अमूल्य होते हैं।


"लज्जा" मन का सबसे महत्वपूर्ण आभूषण.....

Wednesday, July 1, 2009


कोशिश.....


किसी चीज़ को पाने की चाहत होना किंतु उसे न हासिल कर पाना फिर भी दृढ़ इच्छा से उसे पाने का प्रयास करना "कोशिश" कहलाती हैं।


"कोशिश"... किसी चीज़ के आवश्यक होने पर न हासिल कर पाना.. फिर भी उसे हासिल करने की चाह रखना या उस चीज़ को पाना आवश्यक बन जाना और उस लिए आवश्यक कदम बढ़ाना "कोशिश" कहलाती हैं।


"कोशिश" यह एक दृढ़ निष्ठां के प्रति बढाया हुआ साहसी कदम होता हैं। इस प्रयास में "आवश्यकता" लक्ष्य होती हैं, एक मज़बूत आधार होती हैं। "कोशिश" प्रामाणिकता का प्रमाण होती हैं।


किसी चीज़ का अत्यंत आवश्यक बन जाना और उसे पानी के प्रती आवश्यक कदम उठाना "कोशिश" ही तो हैं।


"चाह" ही तो "कोशिश" को आगे बढाती हैं। बिना चाहत या आवश्यकता के "कोशिश" के प्रती कदम उठाया ही नहीं जा सकता।


जब बिना चाहत या आवश्यकता के "कोशिश" की जाए तो वह

"निष्पाप कर्म" कहलाता हैं।



कोशिश... किसी को पाने के प्रती उठाया हुआ पहला कदम.....