Monday, August 31, 2009



सादगी....



कुछ बातों को व्यक्त करना, कहना या लिखना सहज नहीं होता, शायद "सादगी" भी इन्हीं में शामिल हैं।













क्या यह तस्वीर वह सब बातें नहीं कहतीं जो हम "सादगी" के बारें में महसूस कर सकें, उसे जी सकें।


आज ज्यादा नहीं लिख पाएंगे बस महसूस करना चाहेंगे।


सच कहना चाहेंगे कल यात्रा करतें हुए ऐसी ही "सादगी" हमनें देखीं।


क्या इसे हम कभी व्यक्त कर सकतें हैं ?


"सादगी" हमेशा "सादगी" ही होतीं हैं।



सादगी.... बस.... सादगी ही होतीं हैं....

Wednesday, August 26, 2009


आनंद....


आनंद.... जब कोई अपना मीत अपने साथ हो तो आनंद कितना दूर होगा।



आनंद अपने मीत के साथ रहते हुए ही आता हैं।

जो बस हमेशा पास रहें यही इच्छा जिस के प्रति हो वही मीत कहलाता हैं।

मीत के साथ रहतें आनंद दुगना हो जाता हैं।

मीत का साथ होना ही आनंद बन जाता हैं।

इस आनंद की कोई परिसीमा नहीं होतीं हैं।

यह बस हमेशा बना रहता हैं।

इसमें सह-हृदयता होतीं हैं।

इस आनंद में निर्मलता और निष्पापता होतीं हैं।

यह एक मीठा अहसास होता हैं।

इस आनंद में आत्म-मिलन होता हैं।

इस आनंद में एक समदृष्टि बन जाती हैं।

यह आनंद हमेशा छाया हुआ रहता हैं।


आनंद.... आत्मा की निर्मलता....

Tuesday, August 25, 2009


आत्म-सम्मान....


आत्म-सम्मान.... जब कोई हमारें आत्म-सम्मान को बनाए रखें इस से बढ़कर और क्या सम्मान हो सकता हैं।


आत्म-सम्मान से हमारीं पहचान बनतीं हैं।

बल्कि आत्म-सम्मान ही हमारीं पहचान बनाता तथा बढाता हैं।

आत्म-सम्मान से हमें आत्मविश्वास मिलता हैं।

जब कोई हमारें आत्म-सम्मान की रक्षा करता हैं तो हमारें साथ साथ वह अपना सम्मान और गौरव भी बढाता हैं।

आत्म-सम्मान में स्वाभिमान झलकता हैं।
आत्म-सम्मान में एक विश्वास दिखाई देता हैं।
आत्म-सम्मान से एक बंधन जुड़ता हैं।

आत्म-सम्मान हमारीं सही पहचान कराता हैं।

आत्म-सम्मान में एक तेज होता हैं जो सिर्फ़ महसूस किया जा सकता हैं।


आत्म-सम्मान.... हमारीं सच्ची पहचान....

Monday, August 24, 2009


बंधन....


बंधन.... एक विश्वास होता हैं, एक इज्ज़त होतीं हैं।



बंधन एक डोर होतीं हैं जो आत्मसम्मान से पहनाई तथा सजायी जाती हैं।

बंधन में एक विश्वास होता हैं जो इस बंधन को बांधें रखता हैं और आगे बढ़ता हैं।

बंधन आत्मा से जुड़ता हैं।

बंधन से हम एक दूजे पर निर्भर हो जातें हैं।

बंधन से एक दूजे को सम्मान दिया जाता हैं, एक दूजे पर भरोसा किया जाता हैं।

बंधन में एक प्यार होता हैं, एक मिठास होतीं हैं।

यह एक प्यारा एहसास होता हैं।

इसमें मैत्रीं होतीं हैं, इस रिश्तें में गहराई होतीं हैं।

इस रिश्तें में एक दिशा होतीं हैं जो हमेशा इस रिश्तें को मजबूत बनातीं हैं।


बंधन.... जिंदगी की एक अनोखी शुरुआत....

Thursday, August 20, 2009



मीत....



मीत....दिल की हर बात जो सहज रूप से समझ जाए।














अपने मीत को कोई बात कहने या समझाने की कभी ज़रूरत ही कहाँ पड़तीं हैं।


वह तो हर बात अपने दिल से, अपनी आत्मा से समझ जाता हैं।


आँखें हर बात अपने मीत से खुलकर तथा निर्मलता से कह देतीं हैं।


और मीत वह हर बात आसानी से पढ़ तथा समझ लेता हैं।


इसमें शब्द कम और आँखें तथा साँसे ज्यादा बोलतीं हैं।


इसमें हर नाता आत्मा से जूडा हुआ होता हैं।


मीत जैसे हमारा ही प्रतिबिम्ब होता हैं।


इस रिश्तें में हमेशा एक मिठास सी होतीं हैं।


मीत हमारीं हर बात कहने से पहले ही उसे जान लेता हैं।


मीत के साथ रहतें हुए हमेशा अपनापन लगता हैं।


मीत हमें अच्छी तरह जानता हैं।


मीत की हर बात में मिठास होतीं हैं।


मीत का सानिध्य हमेशा अपनासा लगता हैं।


मीत हमेशा साथ रहें, हमेशा पास रहें यहीं इच्छा होतीं हैं।


मीत हमेशा मीठा अहसास होता हैं।



मीत.... हमारा प्यारासा प्रतिबिम्ब....

Wednesday, August 19, 2009



प्रार्थना....



प्रार्थना.... मन तथा ह्रदय को पवित्र करती तथा पवित्र रखतीं हैं।






प्रार्थना से मन पवित्र बनता हैं।


प्रार्थना से मन सात्विक बनता हैं तथा मन की सात्विकता बनीं रहतीं हैं।


प्रार्थना से मन के विचार शुद्ध बनते हैं।


प्रार्थना से ह्रदय प्रफुल्लित बनता हैं तथा मस्तिष्क में शीतलता एवं शांतता आतीं हैं।


प्रार्थना मन में उच्च विचार लाती हैं।


प्रार्थना से आत्मिक संतोष मिलता हैं।


प्रार्थना से शुभ विचार मन में रहतें हैं।


प्रार्थना से जीवन में सात्विकता आने लगतीं हैं।


प्रार्थना से मन, ह्रदय तथा आत्मा प्रसन्न रहतें हैं


प्रार्थना से जीवन में उज्वलता आतीं हैं।


प्रार्थना से जीवन प्रकाशित हो उठता हैं।



प्रार्थना.... सभी सात्विक गुणों की शुरुआत....

Tuesday, August 18, 2009



खुशीं....


खुशीं.... आत्मा की प्रसन्नता होतीं हैं।









खुशीं.... जब हर घटना जो आत्मा चाहती हो और उस के अनुरूप वह घट जाए तब खुशीं की असली बुहार देखनें मिलतीं हैं।


खुशीं में हमेशा असलियत छुपीं होतीं हैं।


जो भी बात जब आत्मा चाहे तो वह बात शुभ एवं प्रसन्नदायक होतीं हैं।


इसीलिए जब आत्मा ने चाही हुई घटना जब घटतीं हैं तब खुशीं की बौछार उमड़ उठातीं हैं।


आत्मा की इच्छा पवित्र होतीं हैं।


इसमें प्रसन्नता झलकती हैं।


खुशीं हमेशा मासूम होतीं हैं।


खुशीं हमेशा हर बात से परें होतीं हैं।


खुशीं हमेशा निर्मल होतीं हैं।




खुशीं.... आत्मा की प्रसन्नता....

Monday, August 17, 2009



देखभाल....



देखभाल.... अपने मीत के लिए, अपने साथी के लिए आत्मा से निकलीं हुई परवाह की भावना होतीं हैं।


इसमें आत्मीयता होतीं हैं।


इसमें उमंग और उत्साह होता हैं।


इसमें लगाव होता हैं।


इसमें प्रतिबद्धता होतीं हैं।


इसमें महत्ता होतीं हैं।


इसमें प्रेम, आदर तथा सम्मान होता हैं।


इसमें आत्मिक लगाव होता हैं।



देखभाल.... एक प्यारी सी आत्मभावना....

Saturday, August 15, 2009



साथी....



साथी.... जिंदगी की एक ज़रूरत।









हर एक रिश्ता जो आत्मा से बनता हो वह "साथी" कहलाता हैं।


यह एक प्रतिबद्ध रिश्ता होता हैं।


इसमें एक नाता होता हैं जो हमेशा निभाया जाता हैं।


इसमें एक दूजे के प्रति स्नेह तथा ममता होतीं हैं।


इसमें एक दूजे के प्रति आदर तथा सम्मान होता हैं।


इस रिश्तें में गहराई होतीं हैं जो धीरे-धीरे बढ़तीं जाती हैं।


इसमें समर्पण भाव नैसर्गिक रूप से होता हैं।


अपने से पहले दूजे के प्रति जादा देखभाल की भावना होतीं हैं।


इस रिश्तें में प्रेम होता हैं।


इस रिश्तें में आतुरता होतीं हैं।


इस रिश्तें में सत्यता तथा गंभीरता होतीं हैं।


इस रिश्तें में अपनापन होता हैं।


इसमें भावुकता होतीं हैं।


इस रिश्तें में त्याग की भावना आत्मा से निकलतीं हैं।


इस रिश्तें में मित्रता होतीं हैं।


इस रिश्तें में प्यार होता हैं।


इसमें आत्मसंबंध होता हैं।


सबसे महत्वपूर्ण इसमें "विश्वास" नैसर्गिक रूप से होता हैं।


इसमें एकता होतीं हैं।


इस रिश्तें में जान होतीं हैं।


इसमें एक दूजे के प्रति मिठास होतीं हैं।


इस रिश्तें में मीठापन होता हैं।




साथी.... जिंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत....

Wednesday, August 12, 2009



दर्पण....



दर्पण अपने विचारों का प्रतिबिम्ब होता हैं।






दर्पण हमेशा विचारों के अनुकूल ही प्रतिबिम्ब दिखाता हैं।


दर्पण में प्रतिमाएं होती हैं, वह प्रतिमाएं जो हमारें विचारों को दर्शातीं हैं।


जैसे विचार होतें हैं उन्हीं के अनुरूप प्रतिमाएं दर्पण में दिखतीं हैं।


ये प्रतिमाएं नैसर्गिक होतीं हैं।


आत्मा की छबि विचारों के द्वारा दर्पण से प्रकट होतीं हैं।


आत्मा तो सहज रूप से विचारों को प्रकट कर देती हैं।



दर्पण.... आत्मा का विचारों द्वारा प्रकट होने वाला प्रतिबिम्ब....

Tuesday, August 11, 2009



साथ....



साथ.... एक इच्छा और एक ज़रूरत भी।








साथ आत्मा की अनुमति के बाद ही बनता हैं।


साथ में आत्मा की इच्छा और अनुमति दोनों की ज़रूरत होतीं हैं।


साथ.... एक मीठा और सुहावना सफर होता हैं।


साथ.... में एक मिठास और प्रेम दोनों होतें हैं।


साथ.... में अपनापन होता हैं।


इसमें आत्मा का एक अद्भुत रिश्ता होता हैं।


इसमें देखभाल भी साथ साथ चलतीं हैं।


इसमें लज्जा भी होतीं हैं।



साथ.... बस.... एक साथ होता हैं....

Monday, August 10, 2009



प्रेम....



एक प्यारी सी मिठास एक प्यारी सी मुस्कान के लिए.... हाँ.... बस.... यहीं हैं "प्रेम"।




जब रिश्ता आत्मा से बनता हो और उस आत्मा की आवाज़ जब आखों से गूंजती हुई ह्रदय में जाकर ज़ोर से कुछ स्पंदन कर रहीं हो, कुछ कह रही हों तो बस.... समझ लीजिए की प्यार की बरसात शुरू हो गई हैं।


जब उस मीठी मुस्कान की वजह से हर बात में जब मिठास आने लगें तो बस यही प्यार हैं।


जब वह मीठी मुस्कान हमेशा पास रहने का दिल और मन दोनों.... हाँ.... जी.... हाँ.... जब दिल और मन दोनों करें तब वही प्यार हैं।


हमेशा वह मीठी मुस्कान बस.... पास रहें यहीं आत्मा जब चाहें तब जान लेने की ज़रूरत ही कहाँ पड़तीं हैं क्यों की तब यह सब बातें समजने के लिए मन कहा खालीं होता हैं।


सब कुछ एक ही लगने लगता हैं।


उस मुस्कान की मिठास आत्मा पर कब के अपने रंग उडेल चुकी होतीं हैं।


बस.... वह मिठास ही मिठास दिखनें तथा महसूस होनें लगतीं हैं।


इसी के साथ "देखभाल" भी अपना दामन "प्यार" से जोड़ लेतीं हैं।


बस..... अब बाकी बातें महसूस कर लो....


यही प्यार के प्रति स्नेह होगा, उस मिठीसी मुस्कान के प्रति प्यार होगा।





प्यार.... बस.... महसूस कर लीजिए....

Friday, August 7, 2009



भूतकाल से सीखना....


भूतकाल से सीखना.... इन्सान को मिलीं एक बहोत बड़ी ताकद और एक बहोत बड़ा वरदान हैं।




अपने अतीत को, अपने भूतकाल को याद कर पाना, यानि बीती जिन्दगी को फिर से दोबारा जीने का मौका मिलना एक वरदान ही तो हैं।


भूतकाल से सीखना यानि सोने की खान मिलने के बराबर हैं।


यह वो चीज़ हैं जो भूतकाल में की हुई गलतियों पर विचार कर के अपने मंझिल के प्रति आगे बढ़ा जाए।


जब वर्तमान काल में हो रहीं गलतियाँ कम ना हो रहीं हो तो यह वह समय हैं जब भूतकाल से बहोत कुछ सिखा जा सकता हैं।


भूतकाल हमारें निकटतम मित्र की तरह होता हैं, जो हमें मुश्किल समय में सही राह दिखा कर आगे बढ़नें में मदद कर सकता हैं।


भूतकाल से सीखनें को मिलना यानि परिस मिलनें के बराबर हैं, यह मुश्किलों को आसन तो नहीं करता, पर हाँ, मुश्किलों से उभर कर उन से लड़ने ताकद ज़रूर देता हैं जो एक महत्वपूर्ण लडाई लड़ने के लिए काफी हैं।



भूतकाल से सीखना.... विकसित बनने के प्रति बढाया हुआ पहला कदम....

Wednesday, August 5, 2009



नायक....



नायक.... किसे कहा जा सकता हैं नायक....





सिर्फ़ उसे जिसमें हर परिस्थिति का सामना करने की तैयारीं हैं, भावना हैं....


जब यह भावना होतीं हैं तो ऐसे परिस्थिति से सामना करने की ताकद और हिम्मत अपने आप जाती हैं।


नायक.... एक अनुभव का भंडार होता हैं।


नायक.... परिस्थिति के हर रंग तथा पहलु को जान तथा जी चुका होता हैं।


एक नायक के लिए ख़ुद के प्रति इमानदार होना बहोत ज़रूरी होता हैं।


नायक परिस्थितियों से अपने आप बन तथा सवर जातें हैं।


एक नायक की इच्छा ही परिस्थितियों का रंग-ढंग बदल देतीं हैं।




नायक.... परिस्थितियों ने बनाया हुआ एक अद्भुत हिरा....

Monday, August 3, 2009



जीत के प्रति इंतजार तथा संयम....



यह एक संयम की भावना होतीं हैं।







आत्मविश्वास के साथ साथ संयम का होना भी आवश्यक हैं।


हर बात को संयम ही तो आगे ले जाता हैं।


इंतजार.... संयम का एक भाग होता हैं।


संयम ही आत्मविश्वास को जीत के प्रति आगे बढाता हैं।


संयम एकाग्रता बढाता तथा बनाए रखता हैं।


संयम से एकाग्रता बढ़तीं तथा संदिग्धता घटतीं हैं।


संयम से लक्ष्य पर ध्यान बने रहता हैं।




संयम.... लक्ष्य के प्रति ले जाने वाला एक अच्छा तथा सच्चा मित्र....