Thursday, December 3, 2009

महसूस....


महसूस करना यानि ख़ुद के विचारों तथा भावनाओं को जी लेना।


हमारें विचार हमारीं भावनाओं को प्रकट करतें हैं।


उसी तरह हमारीं भावनाएं भी हमारें विचारों को प्रकट करतीं हैं।


हम वही चाहतें हैं जो हम महसूस करतें हैं।


लेकिन क्या महसूस करना हमारें विचारों पर या हमारीं भावनाओं पर निर्भर करता हैं ?


जी नहीं, महसूस करना हमारें विचार तथा भावनाओं पर निर्भर नहीं करता।


यह तो एक एहसास होता हैं जो परिस्थिति पर निर्भर करता हैं की हम क्या और कैसे महसूस करें।


अगर कोई हमें याद कर रहा हो, तो वह उस माहोल या परिस्थिति पर निर्भर करता हैं की हम उस समय कैसा महसूस करें।


महसूस करना हमारीं आत्मा की गहराई पर ही निर्भर करता हैं।


जब हमारीं आत्मा की गहराई बढ़ जातीं हैं तब हम महसूस भी उसी गहराई से करतें हैं।


कितनें ऐसे विचार या भावनाएं होतीं हैं, जो हम चाह कर भी प्रकट नहीं कर सकतें।


बस, उन्हें हम महसूस कर के जी लेने की एक छोटी सी कोशिश कर लेतें हैं।


लेकिन उस कोशिश में हम जो महसूस करने की कोशिश करतें उस में हम कितनें कामियाब होतें हैं।


शायद हम कभी कामियाब नहीं होतें।


अगर हम हमारी आत्मा की आवाज़ सुन लें और उस बात को महसूस कर लें जो हम सही में महसूस करना चाहतें हैं, तो हम सही अर्थ में जीवन जी लेतें हैं।


आत्मा हमेशा सही और आवश्यक मार्ग ही बतलातीं और जब हम हमारीं आत्मा की आवाज़ सुन लें और आवश्यक कदम उठा लें तब जीवन की एक गहरीं मिठास हमें मिल जातीं हैं और हम अपना जीवन पूर्णता से जी लेतें हैं।


महसूस.... आत्मा के मार्ग से जीवन जीने का सरल मार्ग....

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