Monday, June 29, 2009




लोकप्रियता.....


कला के परिपक्व होने को लोकप्रियता कहा जा सकता हैं।


कला.... एक इच्छा और उमंग के साथ बनती तथा सवरती हैं।

कला को आत्म-इच्छा और रूचि से बनाया तथा मेहनत के धागे में पिरोया जा सकता हैं। इसे सिर्फ़ आत्म-इच्छा से आगे बढाया जा सकता हैं। लोकप्रियता.... कला के अन्तिम छोर का चरम बिन्दु होती हैं।


लोकप्रियता.... कला के परिपक्वता का ही परिणाम हैं। कला में आत्मा को ढूंढने वालों को लोकप्रियता से कोई वास्ता नही लगता और नाही उन्हें कोई लगाव होता है। ये तो बस आत्मा की तृप्ति के लिए बनाई और सवारी जाती है।


लोकप्रियता... कला के परिपक्वता का एक मीठा फल है जिसे कला को सवारने वाले कभी खाने की इच्छा नही करते। वे तो इसे कला के लिए की गई मेहनत के पेड़ का फूल समजते हैं जिसे सिर्फ़ देखा और निहारा जा सकता हैं।


कला तो आत्मा का दर्पण होती हैं। यह तो बस अपने आप आत्मा के धुन में रंग जाती है और बनती सवरती रहती है। यह लगन बढाती हैं। लगन तो आत्मा के अनुकूल होने पर ही अपने आप बनती तथा बदती हैं।



कला...... आत्मा की धुंद

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