Wednesday, September 2, 2009



सामर्थ्य....


सामर्थ्य.... वह होता हैं जो मनुष्य को सामर्थ्यशाली बनाएँ।















सामर्थ्य.... मनुष्य का सबसे मजबूत आधार होता हैं।


ऐसे ही सामर्थ्यों में से मौन भी एक बहोत ही बड़ा सामर्थ्य हैं।


मौन रखनें से आतंरिक शक्तियों का विकास होता हैं।


कहा जाता हैं की मनुष्य दो समय दौर्बल्य होता हैं, पहले तब जब कुछ कहना ज़रूरी होता हैं तब कुछ न कहना और दूसरा तब जब शांत रहना चाहिए तब कुछ कहना।


मौन रखनें से हम वह सब बातें सुन सकतें हैं जो ईश्वर हमसे कहना चाहतें हैं।


मौन रखनें से बहोत कुछ कहा जा सकता हैं।


मौन.... आतंरिक शक्तियों का स्रोत....

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