Monday, September 21, 2009

मानसिकता....

मानसिकता.... आइए आज मानसिकता के बारें में विचार करें।

कहतें हैं की कोशिश करनें से हर वह बात जो आप चाहतें हो मिल जातीं हैं।

पर यह बात कहा तक सत्य हैं आइए ज़रा देखें।

कोशिश करतें समय अगर कोशिश करनें की या कुछ पानें की भावना या मानसिकता न हो तो वह कोशिश किस हद तक सफल होगी ?

यानी कोशिश करतें समय सिर्फ़ कृती की ही नहीं बल्कि मानसिकता की तैयारी भी आवश्यक हैं।

पर सवाल यह हैं की यह मानसिकता कैसे बनाई जाए या बरक़रार रखी जाए ?

क्यों की मानसिकता वह चीज़ तो हैं नहीं की जब जी चाहा, जैसे जी चाहा उसके अनुरूप बना लीं।

यहीं वह बात हैं जो मनुष्य को सफलता की ओर ले भी जातीं हैं ओर सफलता से परें भी रखतीं हैं।

क्यों की मानसिकता पर ज़ोर नहीं चलता, यह नैसर्गिक रूप से बनतीं, सवरती तथा ढलती हैं।

मनुष्य के वश में हर बात तो नहीं होतीं ना...।

और इसमें भी बड़ी बात यह की अगर मानसिकता के बनने का इंतजार करो तो सालों बीत जातें हैं पर मानसिकता ज्यों की त्यों बनीं रहतीं हैं।

अगर ज़बरदस्ती से मानसिकता बनाने की कोशिश भी की जाए तो उस कोशिश में विश्वास नहीं होता, वह कब पत्तों की तरह बिखर जाए इस का भरोसा नहीं होता।

हर किताब में यह तो लिखा होता हैं की आत्मविश्वास होनें से मनुष्य यह कर सकता हैं, वह कर सकता हैं, पर आपनें कभी किसी किताब में यह पढ़ा हैं की आत्मविश्वास कैसे बनाया या बढाया जाता हैं ?

कभी कभी ऐसी किताबें भी खोखली बातों की तरह लगतीं हैं, जिनसे आप ना कुछ हासिल कर सकतें हों और ना ही कुछ बन सकतें हों।

और सबसे बढ़िया बात तो यह हैं की अगर आप मानसिकता के इस असहकार्य की वजह को खोजनें निकलें तो बस फिर तो पूछिए ही मत।

पता नहीं यह ऐसा क्यों होता हैं।

यह तो वही जान सकता हैं जो इस दौर से गुज़र चुका हों।

एक थका मुसाफिर....

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