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संभाषण....
अपनी बात को यथा योग्य तरीके से प्रकट करना "संभाषण" कहलाता हैं।
संभाषण करनें के कुछ नियम तो नहीं होतें, हाँ कुछ विवेक ज़रूर होतें हैं।
जब अपनी बात कहनी हो या प्रकट करनी हो तो सबसे पहले यह बात तो तय होनी चाहिए की जो बात हम कहने जा रहें हैं वह बात जिन्हें हम कहने जा रहें उन्हें वह बात पता नहीं हैं।
यह बात तब विशेष महत्वपूर्ण होतीं हैं जब हम किसी अजनबी व्यक्ति से बात कर रहें हो।
इसीलिए यथा योग्य बात कहना एक कौशल्य माना गया हैं।
यह एक अंदरूनी इच्छा से प्रकट हो जाता हैं।
यह एक नैसर्गिक देन भी हो सकतीं हैं।
मनमोहक बातें करना एक अंदरूनी कौशल्य हैं।
संभाषण से हमारें विचार तथा स्वभाव प्रकट होता हैं।
संभाषण.... एक नैसर्गिक कौशल्य....
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