Thursday, August 20, 2009



मीत....



मीत....दिल की हर बात जो सहज रूप से समझ जाए।














अपने मीत को कोई बात कहने या समझाने की कभी ज़रूरत ही कहाँ पड़तीं हैं।


वह तो हर बात अपने दिल से, अपनी आत्मा से समझ जाता हैं।


आँखें हर बात अपने मीत से खुलकर तथा निर्मलता से कह देतीं हैं।


और मीत वह हर बात आसानी से पढ़ तथा समझ लेता हैं।


इसमें शब्द कम और आँखें तथा साँसे ज्यादा बोलतीं हैं।


इसमें हर नाता आत्मा से जूडा हुआ होता हैं।


मीत जैसे हमारा ही प्रतिबिम्ब होता हैं।


इस रिश्तें में हमेशा एक मिठास सी होतीं हैं।


मीत हमारीं हर बात कहने से पहले ही उसे जान लेता हैं।


मीत के साथ रहतें हुए हमेशा अपनापन लगता हैं।


मीत हमें अच्छी तरह जानता हैं।


मीत की हर बात में मिठास होतीं हैं।


मीत का सानिध्य हमेशा अपनासा लगता हैं।


मीत हमेशा साथ रहें, हमेशा पास रहें यहीं इच्छा होतीं हैं।


मीत हमेशा मीठा अहसास होता हैं।



मीत.... हमारा प्यारासा प्रतिबिम्ब....

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