Wednesday, August 26, 2009


आनंद....


आनंद.... जब कोई अपना मीत अपने साथ हो तो आनंद कितना दूर होगा।



आनंद अपने मीत के साथ रहते हुए ही आता हैं।

जो बस हमेशा पास रहें यही इच्छा जिस के प्रति हो वही मीत कहलाता हैं।

मीत के साथ रहतें आनंद दुगना हो जाता हैं।

मीत का साथ होना ही आनंद बन जाता हैं।

इस आनंद की कोई परिसीमा नहीं होतीं हैं।

यह बस हमेशा बना रहता हैं।

इसमें सह-हृदयता होतीं हैं।

इस आनंद में निर्मलता और निष्पापता होतीं हैं।

यह एक मीठा अहसास होता हैं।

इस आनंद में आत्म-मिलन होता हैं।

इस आनंद में एक समदृष्टि बन जाती हैं।

यह आनंद हमेशा छाया हुआ रहता हैं।


आनंद.... आत्मा की निर्मलता....

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