Wednesday, July 8, 2009



निष्पापता.......



निष्पापता... किसी भाव से अनजान रहना हीं निष्पापता का होना कहलाता हैं।


यह एक बड़ा ही अदभुत दृश कहलाता हैं। निष्पापता बच्चों में नैसर्गिक रूप से होती हैं।


जब बच्चा अपनी माँ से कोई मासूम या अनजान सा सवाल कर रहा हो तो वो दृश आप महसूस कर सकतें हों।


निष्पापता... यह एक भावना रहित भाव का आभास होतीं हैं। इसमें मासूमता तो पुरी तरह भरीं होती हैं। यह एक निष्पाप भावना होती हैं। यह एक सच्ची भावना होती हैं। निष्पापता नैसर्गिक होतीं हैं।


यह अपने आप प्रकट होती हैं। इसमें कोमलता होती हैं। इसमें आदर होता हैं। इसमें प्यार होता हैं।


इसमें मैत्री होतीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण इसमें निर्भयता होती हैं। निष्पापता डर से हमेशा परें होती हैं।


इसमें आत्मा का प्रतिबिम्ब प्रकट होता हैं। यह तो आत्मा का सहज रूप से दर्पण होती हैं।



निष्पापता....आत्मा की एकमेव पहचान.....

1 comment: