Tuesday, July 21, 2009



मन के रंग....



मन के रंग.... कैसे होतें हैं कभी कोशिश की हैं देखनें की या महसूस करनें की ?



मन के रंग.... ज्यादातर तो परिस्थितियों पर ही निर्भर करतें हैं।



आज अगर हम खुश हैं तो मन के रंग भी इन्द्र धनुष्य की तरह चमक तथा खिल उठातें हैं।



मन के रंगों की असली उड़ान और बरसात तो बचपन में ही देखनें मिलतीं हैं।



हर चीज़ में सच्चाई, मिठास और अपनापन होता हैं। बचपन में हम सब खुशी का अहसास पाने की तान में तथा पानें की ताक में रहतें हैं। क्या हो अगर हर चीज़ सरल और सुलभ होने लगें तथा दिखनें लगें ?



बचपन.... मन के हर रंग में रंग जाता हैं। इस रंग में रंगने के लिए इसे किसी आमंत्रण की ज़रूरत नहीं पड़तीं।



बस खुशी की एक फुहार मिलीं, खुशी का एक एहसास मिला और बस मन के रंग में रंग गए।



और बचपन माँ की गोद में हो तो........ फिर तो बस..... पूछों मत।



उस समय मन के रंग कैसे होंगे ? महसूस तो कीजिए।




मन के रंग..... बचपन और माँ के प्यार और स्नेह का एक अद्भुत मिलाप....

No comments:

Post a Comment