Friday, July 31, 2009



जीत....



जीत.... आत्मा के अन्दर धगधगती हुई आग होतीं हैं।







जब कर के दिखाना ही सब कुछ बन जाता हैं, जो अन्दर ही अन्दर बहोत समय से सुलगती हुई आग जब बहोत ताकद और आत्मविश्वास से बाहर आतीं हैं वो "जीत" ही होतीं हैं।


जीत.... एक संयम का परिणाम होतीं हैं, जीत.... एक तपस्या का परिणाम होतीं हैं।


जब सब कुछ, हर एक बात आत्मा से निकलती हैं, अपने ही जोश के साथ जब आगे बढ़तीं हैं, तब वो हर बात जीत का रूप लें लेतीं हैं।


जीत.... एक दृष्टिकोण का परिणाम होतीं हैं।


जीत.... लक्ष्य के प्रति बढाया हुआ हर सफलतम कदम का परिणाम होतीं हैं।


जीत.... ध्यान बनाए रखनें का परिणाम होतीं हैं।




जीत.... आत्मा की गहरीं तथा प्रबल इच्छा....

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