Sunday, July 12, 2009



बसंत.....



बसंत...... बस, मन में एक बहार सी आ जाती हैं।


बसंत की बहार ही ऐसी होती है.... की हर कही पर बहार ही बहार नज़र आती हैं।


इस माह में स्वर्ग की झलक सी दिखाई पड़ती हैं। बसंत रुतु सब रुतुओं का राजा कहलाता हैं।


बसंत हर जगह हर तरफ़ एक उमंग और बहार फैलता हुआ आता हैं। मानो सृष्टि ने हर तरफ़ खुशियों की बहार उडेल दी हों। मन तो बसंत में ही पुरी तरह खिलता हैं।


उत्साह और उमंग यह दोनों ही एक साथ चलतें दिखाई देते हैं। आत्मा भी बसंत के बहार में पुरी तरह से भिग जाती हैं।


यह एक नैसर्गिक घटना और नैसर्गिक उमंग होती हैं।


हम इस बसंत में पुरी ज़िन्दगी जी लेतें हैं। हैं ना ?



बसंत..... मन और आत्मा की बहार.....

1 comment:

  1. बसंत..... मन और आत्मा की बहार...सुंदर रचना...बधाई

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