Monday, July 20, 2009


बचपन....


बचपन.... और क्या कहा जा सकता हैं इसके बारें में।

बस.... महसूस कर लों।

मासूमियत और निष्पापता का पूरा भंडार होता हैं बचपन।

इसमें शुद्धता होतीं हैं, पवित्रता होतीं हैं।

इसमें मिठास होतीं हैं। इसमें अपनापन होता हैं।

इसमें मित्रता होतीं हैं। इसमें जान होतीं हैं। बचपन आत्मा का दर्पण होता हैं।

मन की पवित्रता बचपन में दिखाई देतीं हैं।


बचपन में लगाव होता हैं। बचपन में कदर होतीं हैं।

बचपन में ओढ़ होतीं हैं। इसमें सरलता होतीं हैं।

इसमें स्पष्टता होतीं हैं।


बचपन.... दिल की धड़कन.... दिल की जान....

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