Thursday, July 16, 2009



रोशनी....



रोशनी.... अंधेरे से उजाले की ओर जाने का सुगम तथा सरल माध्यम।


रोशनी सुहावनी होती हैं।


चाँद की रोशनी रात में और सूरज की रोशनी दिन में अपना एक अलग ही महत्त्व रखतीं हैं।


लेकिन मध्यम रोशनी हमेशा प्यारी लगतीं हैं। इस में शीतलता होतीं हैं। इस में मिठास होती हैं।


यह अपने आप ही में अद्भुत होतीं हैं। इस में आकर्षण होता हैं। इसमें कोमलता होतीं हैं।


रोशनी पथ दर्शक होतीं हैं। मंजिल तक पहुँचने का एक माध्यम होतीं हैं।


रोशनी मार्गदर्शक होतीं हैं।



रोशनी.... एक भव्यता और दिव्यता....

Wednesday, July 15, 2009



पथ....



पथ.... जो हमेशा हमें ज़िंदा रखतें हैं।


जो हमें हमारीं मंज़िल तक ले जातें हैं।



पथ... का सफर तो बहोत सुहाना होता हैं।


जिंदगी के हर पहलु को समजने का यह बहोत ही सुगम और सरल मार्ग हैं।


हम जीवन की हर एक बात को पथ के सफर में ही जान तथा समझ सकतें हैं। जब हम पथ पर चलतें हैं तो पथ का सफर हर मोड़ पर अलग सा नज़र आता हैं।


हर मोड़ पर एक अलग ही सुहाना सा दृश्य हमें दिखाई देता हैं। पथ... हमारीं ज़िन्दगी का एक हिस्सा होतें हैं।


जब कभी हमने पथ का साथ चुना हैं हमेशा एक नई मंज़िल को पाया हैं।


इस प्रकार पथ तो हमारें एक अच्छें मित्र साबित होतें हैं। हैं ना ?



पथ....हमारें जीवन के एक सच्चें मित्र......

Tuesday, July 14, 2009






मन के द्वार....




मन के द्वार..... हमेशा एक सुन्दरता की निशानी होतें हैं।



सुन्दरता की झलक मन के द्वार से ही होकर गुजरती हैं।



मन के सारें रंग मन के द्वार पर झिलमिलातें हुए नज़र आतें हैं। क्या कोई जान या महसूस भी कर पता हैं की मन के द्वार कैसे होतें हैं।



सच पूछों तो मन के द्वार हमेशा सुंदर तथा कोमलता के फूलों से सजे हुए होतें हैं। मन के द्वारों से एक अलग सी ही महक आतीं हैं।



मन के द्वार जब कोई अपने मन से देख लेता हैं तो फिर कुछ जानने की या समझने की ज़रूरत ही कहाँ रह जाती हैं।



मन की हर भावना, मन के द्वार पर हमेशा एक दूजे से अपनी बात करती हुई दिखाई देतीं हैं।



क्या मन के द्वार इतने सुंदर होतें हैं ? जी हाँ....





मन के द्वार...... हर शुभ काम की शुरुवात....

Monday, July 13, 2009



प्रतिबिम्ब.....



विचार हमारें प्रतिबिम्ब होतें हैं।

वास्तविकता में आत्मा ही हमारी असली प्रतिबिम्ब होती हैं।



प्रतिबिम्ब हमारी छबि होतें हैं। प्रतिबिम्ब हमारें विचारों के दर्पण होतें हैं।


प्रतिबिम्ब हमें हमारें मूल्य तथा हमारीं त्रुटियां प्रतिबिंबित करतें हैं।


यह एक बहुत ही आश्चर्यजनक बात होती हैं की हम हमारीं प्रतिमा को अपने सामने देख सकतें हैं।


प्रतिबिम्ब हमारी आत्मा के दर्पण होतें हैं। प्रतिबिम्ब में हम अपने वर्तमान को जान सकतें हैं।


प्रतिबिम्ब में हमारीं आत्मा तथा मन की छबि स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।


हमारीं हर बात को हम प्रतिबिम्ब में देख तथा ताड़ सकतें हैं। प्रतिबिम्ब में हमेशा सच्चाई होती हैं।




प्रतिबिम्ब..... हमारीं आत्मा और मन के दर्पण...

Sunday, July 12, 2009



बसंत.....



बसंत...... बस, मन में एक बहार सी आ जाती हैं।


बसंत की बहार ही ऐसी होती है.... की हर कही पर बहार ही बहार नज़र आती हैं।


इस माह में स्वर्ग की झलक सी दिखाई पड़ती हैं। बसंत रुतु सब रुतुओं का राजा कहलाता हैं।


बसंत हर जगह हर तरफ़ एक उमंग और बहार फैलता हुआ आता हैं। मानो सृष्टि ने हर तरफ़ खुशियों की बहार उडेल दी हों। मन तो बसंत में ही पुरी तरह खिलता हैं।


उत्साह और उमंग यह दोनों ही एक साथ चलतें दिखाई देते हैं। आत्मा भी बसंत के बहार में पुरी तरह से भिग जाती हैं।


यह एक नैसर्गिक घटना और नैसर्गिक उमंग होती हैं।


हम इस बसंत में पुरी ज़िन्दगी जी लेतें हैं। हैं ना ?



बसंत..... मन और आत्मा की बहार.....

Wednesday, July 8, 2009



निष्पापता.......



निष्पापता... किसी भाव से अनजान रहना हीं निष्पापता का होना कहलाता हैं।


यह एक बड़ा ही अदभुत दृश कहलाता हैं। निष्पापता बच्चों में नैसर्गिक रूप से होती हैं।


जब बच्चा अपनी माँ से कोई मासूम या अनजान सा सवाल कर रहा हो तो वो दृश आप महसूस कर सकतें हों।


निष्पापता... यह एक भावना रहित भाव का आभास होतीं हैं। इसमें मासूमता तो पुरी तरह भरीं होती हैं। यह एक निष्पाप भावना होती हैं। यह एक सच्ची भावना होती हैं। निष्पापता नैसर्गिक होतीं हैं।


यह अपने आप प्रकट होती हैं। इसमें कोमलता होती हैं। इसमें आदर होता हैं। इसमें प्यार होता हैं।


इसमें मैत्री होतीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण इसमें निर्भयता होती हैं। निष्पापता डर से हमेशा परें होती हैं।


इसमें आत्मा का प्रतिबिम्ब प्रकट होता हैं। यह तो आत्मा का सहज रूप से दर्पण होती हैं।



निष्पापता....आत्मा की एकमेव पहचान.....

Tuesday, July 7, 2009



आत्मा....



आत्मा हमारा अस्तित्व होती हैं। आत्मा हमारी सच्चाई होती हैं। आत्मा की आवाज़ ईश्वर की आवाज़ होती हैं।

आत्मा ईश्वर का रूप होती हैं।


आत्मा की भावना प्रबल और जागृत होती हैं। आत्मा से ही हमारे अस्तित्व की पहचान होतीं हैं।


जब कभी निर्णय लेना हो तो आत्मा की आवाज़ सुन लेनी चाहिए। पहली बार देखने पर जो आवाज़ अन्दर से आती हैं वो आत्मा की आवाज़ होती हैं। वो आवाज़ हमेशा सच होती हैं।


आत्मा की सुनकर अगर हम कोई काम करें तो हम सफल होतें हैं। आत्मा हमेशा सही रास्ता दिखाती हैं। आत्मा की आवाज़ सुनकर उसकी रह पर चलने से भय से दूर तथा आत्मविश्वास के साथ चला जा सकता हैं।



आत्मा.... हमारी सच्छी पहचान.....

Monday, July 6, 2009


अकेलापन....



अकेलापन.... एक सबसे अच्छा और सच्छा दोस्त। यह एक बड़ा ही प्यारा दोस्त होता है।

इसके साथ रहते हुए हम कभी अकेलापन महसूस ही नहीं कर पातें।

जब अकेलापन साथ हो तो हम कभी अकेला महसूस नहीं करतें।

यह हमारे अन्दर की खुशी और अपनेपन को बाहर लाता हैं तथा अपने अन्दर छुपें हुए उस खूबी को बाहर लाता हैं जिसे सिर्फ़ अकेलेपन में ही पाया तथा महसूस किया जा सकता हैं।
अकेलेपन में हम अपने आप के सर्वाधिक नज़दीक आतें हैं।


हम ख़ुद को अच्छी तरह महसूस तथा जान पातें हैं। अकेलापन हम से हमारी हर बात बाँटता हैं। यह हमें अंदरूनी खुशी देता हैं।
अकेलेपन में हम ख़ुद को खुश महसूस करतें हैं। अकेलापन एक मीठा अहसास होता हैं।


अकेलेपन में हम ख़ुद के अधिक करीब आतें हैं।



अकेलापन...एक अपना प्यारा दोस्त.....

Sunday, July 5, 2009



उत्सुकता....



मन को भाने (अच्छी लगने) वाली चीज़ के बारें में जानने की उत्कंठा रखना या उत्कंठा होना उत्सुकता कहलाती हैं।


यह ऐसे चीज़ के बारें में जानने की इच्छा या उत्कंठा होती हैं जिसे कभी न जाना हो। उत्सुकता मन और आत्मा में एक मिठास जगाती हैं।

उत्सुकता भविष्य के बारें में जानने की भावना होती हैं। जानना और महसूस करने की भावना को उत्सुकता कहा जा सकता हैं।


अनजानी चीज़ को जानने की चाह रखना उत्सुकता ही तो हैं। उत्सुकता में मिठास होती हैं। उत्सुकता मीठी लगती हैं। भविष्य में होनें वालें परिणामों को जानने की इच्छा उत्सुकता कहलाती हैं।


उत्सुकता परिणामों पर निर्भर करती हैं। अगर परिणाम शीघ्र ही दिखनें या समज में आने वालें हो तो उत्सुकता की मिठास भी उतनी ही होती हैं।


उत्सुकता एक मीठी भावना होती हैं।



उत्सुकता.... जानने की आंस.....

Saturday, July 4, 2009



आँसूं....



आँसूं .... भावनाओं के दर्पण होतें हैं। मन के विचारों के प्रतिक होतें हैं। आँसूं इच्छाओं के प्रतिबिंब होतें हैं।


आँसूंओ की भाषा हर कोई नहीं समज़ पाता। ये तो आत्मा की प्रतिमा होतें हैं।

आँसूं तो आत्मा की भाषा होतें हैं। आँसूं तो मन और आत्मा की भाषा कहतें हैं। आँसूं विचारों के प्रतिक होतें हैं। आँसूं मन के दर्पण हो सकते हैं ? जी हाँ, आँसूं तो मन और आत्मा दोनों के दर्पण होतें हैं।


आँसूं एक भाषा होतें हैं और ये भाषा अपने आप पढ़ी जाती हैं। आँसूंओ की भाषा तो मन की भाषा पढ़ने वाले सहज रूप से पढ़ सकतें हैं।


आँसूं हमें और हमारें विचारों को प्रकट करतें हैं।


आँसूंओ का होना भावनाओं के अस्तित्व का प्रतिक हैं।



आँसूं..... मन और आत्मा के प्रतिबिंब.....

Thursday, July 2, 2009


मन के आभूषण....



मन के आभूषण.... आदर,संकोच,निर्मलता,निर्भयता,अपनापन,लज्जा,मिठास... यह सब मन के अलौकिक आभूषण हैं।


मन एक अपनी ही ईच्छा से चलने वाला राजा और इस राजा के ऊपर लिखित सभी अमूल्य आभूषण होते है। इन अलौकिक आभूषणों के बिना तो मन की शोभा ही नही बढ़ती ऊपर लिखित सभी आभूषणों के अपने अपने अमूल्य गुन होते हैं। यह सभी आभूषण मन रूपी राजा की शोभा बढ़ाते हैं।


एक राजा जो अपने आभूषणों के बिना हमेशा अधुरा सा लगता हैं। पर आभूषण ही उसे पूर्णत्व दिलाते हैं। राजा तभी राजा कहलाता हैं जब उस में राजा जैसे गुन हो। आभूषण तो बस राजा की शोभा बढाते हैं। अगर मन रूपी राजा के पास ये अमूल्य आभूषण न हो तो मन रूपी राजा की शोभा कैसे बढेगी ?


मन के आभूषण हमेशा अमूल्य होते हैं।


"लज्जा" मन का सबसे महत्वपूर्ण आभूषण.....

Wednesday, July 1, 2009


कोशिश.....


किसी चीज़ को पाने की चाहत होना किंतु उसे न हासिल कर पाना फिर भी दृढ़ इच्छा से उसे पाने का प्रयास करना "कोशिश" कहलाती हैं।


"कोशिश"... किसी चीज़ के आवश्यक होने पर न हासिल कर पाना.. फिर भी उसे हासिल करने की चाह रखना या उस चीज़ को पाना आवश्यक बन जाना और उस लिए आवश्यक कदम बढ़ाना "कोशिश" कहलाती हैं।


"कोशिश" यह एक दृढ़ निष्ठां के प्रति बढाया हुआ साहसी कदम होता हैं। इस प्रयास में "आवश्यकता" लक्ष्य होती हैं, एक मज़बूत आधार होती हैं। "कोशिश" प्रामाणिकता का प्रमाण होती हैं।


किसी चीज़ का अत्यंत आवश्यक बन जाना और उसे पानी के प्रती आवश्यक कदम उठाना "कोशिश" ही तो हैं।


"चाह" ही तो "कोशिश" को आगे बढाती हैं। बिना चाहत या आवश्यकता के "कोशिश" के प्रती कदम उठाया ही नहीं जा सकता।


जब बिना चाहत या आवश्यकता के "कोशिश" की जाए तो वह

"निष्पाप कर्म" कहलाता हैं।



कोशिश... किसी को पाने के प्रती उठाया हुआ पहला कदम.....


Tuesday, June 30, 2009


खालीपन......




खालीपन नया काम शुरू करने का शुभ मुहूर्त होता हैं। खालीपन किसी काम के ख़त्म होने की और किसी नये काम के शुरू होने की निशानी होती हैं।



खालीपन मन को तरो ताज़ा करने का एक अच्छा समय होता है। एक मात्रा तक खालीपन मन और आत्मा को शांती प्रदान कर सकता हैं। यह वही समय होता है जब किसी अच्छे विचार और अच्छी शुरुवात करने का प्रारम्भ किया जा सकता हैं।




मन पर जो बोज़ होता है वह खालीपन में दूर किया जा सकता हैं। खालीपन में नये विचारों पर सोचा जा सकता हैं। खालीपन में भूतकाल में की गई त्रुटियों पर विचार किया जा सकता हैं। खालीपन मन को नई दिशा दे सकता है। यह वही समय होता है जिससे एक नई शुरुवात की जा सकती है। कुछ लोग खालीपन को सोना (गोल्ड) मानते हैं।




नये विचारों और नई शुरुवात का शुभ मुहूर्त होता हैं खालीपन। खालीपन जिन्दगी की नई शुरुवात हो सकती हैं। खालीपन एक नया मौका हो सकता हैं।





खालीपन एक नई शुरुवात..........




Monday, June 29, 2009




लोकप्रियता.....


कला के परिपक्व होने को लोकप्रियता कहा जा सकता हैं।


कला.... एक इच्छा और उमंग के साथ बनती तथा सवरती हैं।

कला को आत्म-इच्छा और रूचि से बनाया तथा मेहनत के धागे में पिरोया जा सकता हैं। इसे सिर्फ़ आत्म-इच्छा से आगे बढाया जा सकता हैं। लोकप्रियता.... कला के अन्तिम छोर का चरम बिन्दु होती हैं।


लोकप्रियता.... कला के परिपक्वता का ही परिणाम हैं। कला में आत्मा को ढूंढने वालों को लोकप्रियता से कोई वास्ता नही लगता और नाही उन्हें कोई लगाव होता है। ये तो बस आत्मा की तृप्ति के लिए बनाई और सवारी जाती है।


लोकप्रियता... कला के परिपक्वता का एक मीठा फल है जिसे कला को सवारने वाले कभी खाने की इच्छा नही करते। वे तो इसे कला के लिए की गई मेहनत के पेड़ का फूल समजते हैं जिसे सिर्फ़ देखा और निहारा जा सकता हैं।


कला तो आत्मा का दर्पण होती हैं। यह तो बस अपने आप आत्मा के धुन में रंग जाती है और बनती सवरती रहती है। यह लगन बढाती हैं। लगन तो आत्मा के अनुकूल होने पर ही अपने आप बनती तथा बदती हैं।



कला...... आत्मा की धुंद

Saturday, June 27, 2009



नज़र



नज़र.... एक मन का दर्पण। अपने मन का संभाषण अपनी नज़र से कहा या व्यक्त किया जाता है।

अपने मन के हर भाव को नज़र के द्वारा प्रकट किया जा सकता है।

नज़र किसी के दिल तक पहुँचने का एक जरिया है। कहते है की दिल भाषा आंखों से और आंखों की भाषा दिल से पढ़ी या जानी जा सकती है।



किसी के मन की बात पढ़नी हो तो सिर्फ़ उनकी आंखों में देख लो.... मन की बाअपने आप समज में आ जाएगी। कोई चाहे कितनी भी कोशिश करे पर अपने दिल की बात को अपनी आखों से, अपनी नज़र से नहीं छुपा सकतें।



नज़र हमेशा सच कहती है। यह एक ही बात या चीज है जो सिर्फ़ सच कहना जानती है। नज़र पर कभी किसी का ज़ोर नहीं चलता। ये तो बस हमेशा दिल का दर्पण बयां करती है। नज़र का रास्ता सीधा दिल तक जाता है, यानी किसी के दिल को जानना हो तो सिर्फ़ उनकी नज़र से नज़र मिला लीजिए, सब बातें अपने आप समाज में जाएंगी।



नज़र एक मन की परिभाषा होती है।


नज़र... दिल तक ले जाने वाला सीधा रास्ता.....

Friday, June 26, 2009



सुन्दरता......


सुन्दरता.... नैसर्गिकता की एक झलक होती है। सुन्दरता के हर पहलु में नैसर्गिकता झलकती है।

एक तरह से देखा जाए तो नैसर्गिकता ही सुन्दरता होती है।

फिर वो जो कुछ भी हो, सुन्दरता और नैसर्गिकता एक दूजे के दर्पण ही होते है। सुन्दरता को किसी एक दृष्टी से नही देखा जा सकता, बल्कि सुन्दरता के हर पहलु में एक सादगी होती है और सादगी हमेशा सादगी ही होती है और सादगी भी नैसर्गिकता का एक हिस्सा होती है।



नैसर्गिकता एक सुन्दरता के रूप में देखी जा सकती है और उसी तरह सुन्दरता भी एक नैसर्गिकता के रूप में देखी और महसूस की जा सकती है। सुन्दरता एहसास की जा सकती है, बल्कि नैसर्गिकता तो ख़ुद एक सुन्दरता होती है। जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है। सुन्दरता एक मीठा एहसास होती है। सुन्दरता मन को भा जाती है।



जहाँ सुन्दरता एक एहसास है वहां नैसर्गिकता एक गुन है। सभी गुन अगर नैसर्गिक रूप से बहर आए तो एक बहोत प्यारा संगम हो सकता है। सुन्दरता और नैसर्गिकता बस मन में बसी हुई एक छबि होती है।



सुन्दरता एक नैसर्गिकता और नैसर्गिकता एक सुन्दरता........


Thursday, June 25, 2009



आत्मविश्वास...



आत्मविश्वास आत्मा की अनुकूलता होती है। आत्मविश्वास एक गहराई भरा एहसास होता है।

यह एक सरल एहसास लगता है।

एक रास्ता जो सीधा आत्मा की ओर से अपनी ओर आता है।

सब चीजों पर एक वर्चस्व लगने लगता है। एक उमंग भरा एहसास लगता है। आत्मविश्वास एक खुशी भरा एहसास लगता है। जब आत्मा अनुकूल हो जाती है तब सब कुछ सरल लगने लगता है। जिन्दगी का सही एहसास हम तब महसूस करते है। आत्मविश्वास यह एक अनुकूलता होती है, जो सहज रूप से हम उसे महसूस करते है। यह कभी प्रयास करने से नही मिलता, बल्कि एक अवसर पर हम उसे महसूस करने लगते है। यह एक मजबूत एहसास होता है, जो कभी प्रयास करने से नही मिल सकता।



आत्मविश्वास आत्मा की खुशी होती है। जब आत्मा खुश हो तभी हम सब आत्मविश्वास का एहसास महसूस कर सकते है। इसे बस महसूस किया जा सकता है, इसे पाया नही जा सकता। इस रस्ते पर चलना हमेशा अच्छा लगता है।



एक बार कभी अकेले में बैठकर अपनी आत्मा की आवाज सुनने की कोशिश तो करो, क्या पता वहाँ से एक रास्ता सीधा आप की ओर चला आए और पता चले की वो ओर कोई नही बल्कि आत्मा की खुशी है, आप का अपना आत्मविश्वास है.....



आत्मा की खुशी....... आत्मविश्वास.....

Wednesday, June 24, 2009



विश्वास......



चीजें जब तक परफेक्ट न हो तो अछी नही लगती। ये देख रहे हो, ये ट्रोफिज, ये मेडल्स, ये सर्टिफीकेट्स.. ये सब अलग अलग जंगो में अलग अलग फ्रंट्स पे, इसी रेज्मंड्स के बहादुर ऑफिसर्स और जवानों ने इस रेजिमेंड को दिलाए है.... कभी जान पर खेल कर.... कभी जान देकर.... इस रेज्मंडने हमेशा अपने मुल्क और अपनी फौज को कामियाबी और जीत की ख़बर सुनाई है....

और जिस पल तुम ने इसे ज्वाइन किया है, ये तमाम ट्रोफिज और पुरस्कारों के साथ तुम्हारा एक रिश्ता बन गया है।

इन की इज्जत और मान रखना तुम्हारा काम है। और इस काम के लिए तुम्हारे साथ सौ करोड़ आदमियों का आशिर्वाद और विश्वास है। इस देश के सौ करोड़ इन्सान, जो इस विश्वास के साथ सोते है के मैं और तुम जाग रहे हैं।

ये विश्वास बहोत बड़ी इज्जत है......

और बहोत बड़ी जिम्मेदारी भी....

यु अंडरस्टेंड ? यस सर... गुड....

विश्वास एक बहोत बड़ी इज्जत और बहोत बड़ी जिम्मेदारी भी........

Tuesday, June 23, 2009


जिम्मेदारी.......

कभी कभी जिम्मेदारी एक दूर की सोच लगती है। कभी कभी दूर की सोच कर कोई निर्णय लेना यह हिसी डर की निशानी नहीं होती। सोच समजकर लिया हुआ फ़ैसला भी तो एक समज भरी जिम्मेदारी की निशानी ही तो है।
कभी कभी किसी चीज का निर्णय न लेना या ना ले पाना भी जिम्मेदारी के प्रति उठाया हुआ एक समज भरा कदम ही लगता है। जिम्मेदारी एक समज है, एक सोच है, अपने मन का एक दर्पण है।

जिम्मेदारी का मतलब सिर्फ़ काम को पुरा करना ही नहीं होता बल्कि काम के परिणाम को समज कर निर्णय लेना होता है। किसी चीज के प्रति सुरक्षित भाव रखना, डरना नहीं होता है, बल्कि उसके प्रति सुरक्षितता का भाव होता है। जिम्मेदारी का भाव अपना ही एक दर्पण होता है। बस अब यह हमपर निर्भर करता है की हम इस जिम्मेदारी को किस नजरिये से देखते है।

जिम्मेदारी हमारे भविष्य की निशानी भी होती है।

दिल का एहसास........

Monday, June 22, 2009

एहसास.......

एहसास.......
जींदगी कभी कभी एक एहसास लगती है। बच्यों को रूठे हुए देखना, उन्हें हँसता हुआ देखना, उनको मनाते हुए देखना, ये सभी एक एहसास ही तो है।
एक ओर जिन्दगी के साथ रहकर उसके हर पहलु को समजना ओर उसके एहसास को जीना, ये बातें कभी कभी तो समज के बाहर होती है। फिर भी ये एहसास बहोत बार अच्छे लगने लगते है।

श्यायद इन्ही एहसासों की वजह से जिन्दगी मीठीसी लगाती है। एहसास हमारी जिन्दगी का एक अहम् हिस्सा है।
हम हर बार जो महसूस करते है उसीको एहसास मान लेते हैख़ासकर छोटे बचों का एहसास, एक बड़ा ही प्यारा एहसास माना गया है। उनके मासूम से चेहरे, उनपर निष्पाप मन की झलक, मासूम और सरल से सवाल, बस.. ये सब सोचते हुए ही एक प्यारासा एहसास लगने लगता है।

जिन्दगी के हर मोड़ पर श्यायद एहसास ही हमारा साथ देते है।
श्यायद एहसास ही हमारी जिन्दगी होते है।

मन की भाषा.......

Sunday, June 21, 2009

कभी कभी....... जिंदगी ऐसी क्यों होती हैं ?......

ऐसा क्यों होता है जब इंसान अपनी सोच को आगे बढ़ाना चाहता है तो ज्यादातर उसके कदम हर बार पीछे की और मूड ज्याते हैं। क्यों कोई अपनी सोच की तरह नहीं जी पाता ? उसे ऐसी कोंन सी चीज़ है जो आगे जाने नहीं देती ?

जिन्दगी के हर रास्तों पर चलने के बावजूद भी उसके तजुर्बे उसे अपनी मंजिल तक जाने के लिए उसकी मदद नही कर पाते ? जब जिन्दगी सिर्फ़ एक सवाल बनकर रह जाती है......

हर कोई सोच कर भी कितना सोच पायेगा, एक मुकाम पर उसकी सोच भी उसका साथ छोड़ देगी।

फिर उसके पास ऐसा क्या रह जाएगा जो उसके साथ चल सके ?

कभी कभी कुछ सवालों के जवाब नहीं होते और होते भी है तो उसे मिल नहीं पातें......

एक मुसाफिर.......

Saturday, June 20, 2009

True friends are like mornings, u can't have them the whole day, but u can be sure, they will be there when u wakeup tomorrow, next year and forever.


If friends were flowers I would not pick you! I'll let you grow in the garden & cultivate you with love and care so I can keep you as a friend 4ever!!